छत्तीसगढ़ छात्रावास बलात्कार काण्ड
आश्रम के कमरों में दरवाजों में चिटकनी नहीं होने के कारण बच्चे अपने कमरे के दरवाजे में धागा लपेटकर रखते थे, ताकि कोई उनके कमरे में न आ सके, लेकिन उन मासूमों को नहीं मालूम था कि यह कच्चा धागा उनकी अस्मत को नहीं बचा सकता था...
संजय स्वदेश
आदिवासी बाहुल्य राज्य छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के भावी पीढ़ितों का भविष्य कैसा है यह प्रदेश में हाल में खुलासे हुए आश्रम कांड में 11 बच्चियों से कुकर्म की घटना से अनुमान लगता है. कुकर्म की शिकार मासूम ये भी नहीं जानती हैं कि उनके साथ हुआ क्या है. छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले के नरहरपुर स्थित आदिवासी आश्रम में वर्षों से बच्चों को सेक्स एजूकेशन बता कर उनका शारीरिक शोषण आरोपी शिक्षक और चौकीदार करते रहे.

कांकेर छात्रावास : पढाई नहीं बलात्कार का आश्रम
करीब करीब छह माह पहले की बात है. इस आश्रम की एक मासूम गर्भवती भी होती है, महज करीब दस साल की उम्र में गर्भ सहने की क्षमता नहीं रखने वाली मासूम मौत की नींद सो जाती है, लेकिन प्रशासन नहीं जगता है. पीड़ित आदिवासी परिवार लोक लिहाज के कारण मौन साध लेता है, तो प्रशासन यह कह कर अपने आप का पाक साफ बताता है कि उस मासूम की मौत दूसरी बीमारी और एनीमिया से हुई थी.
घटना के खुलासे के बाद मृत लड़की की मां और चाचा ने मौत की नींद सो चुकी गर्भवती लाडली का गर्भावस्था का फोटो मीडिया को उपलब्ध कराया. हालांकि यह लिखना बेशर्मी की हद होगी, लेकिन सच्चाई के लिए ही सही कह कहना जरूरी होता है कि एनीमिया और गर्भावस्था के फूले पेट के आकार में अंतर होता है. फोटो देख कर हकीकत समझा जा सकता है. चूंकि मामला दुष्कर्म का है और कानून की तकनीक के अनुसार जब तक मेडिकल में पुष्टि नहीं होती, आरोपी पाक साफ होंगे.
दुष्कर्मियों के हवस के आग से मौत की नींद सो चुकी गर्भवती मासूम का तो अब मेडिकल नहीं हो सकता है, लेकिन 11 अबोध बालिकाओं की मेडिकल में मामले की पुष्टि हो चुकी है. लिहाजा, अबोध बालिकाओं के नरकीय अनुभव का अनुमान लगाया जा सकता है.
प्रशासन ऐसे मामलों में कितना गंभीर है, इसका अनुमान इस बात से लग सकता है कि जब छह माह पहले इस मुद्दे को लेकर पंचायत बैठी और विभाग के अधिकारी के पास मामला पहुंचा तो कुकर्म के आरोपी शिक्षक से लिखित में माफी मांगने भर से उसे छोड़ दिया गया था. अब मामला उजागर हो गया है तो छत्तीसगढ़ के तमाम कन्या आश्रमों से धड़ाधड़ पुरुषकर्मी हटाए जा रहे हैं. पर हालात देख कर ऐसा नहीं लगते हैं कि इससे भविष्य में भी ये अबोध बालिकाएं कुकर्मियों के हवस की आंच से सुरक्षित रहेंगी.
इस तरह का मामला कुछ वर्ष पहले भी प्रदेश के एक आश्रम से उजागर हुआ था, लेकिन तब भी बात आई गई हो गई थी. अभी तक ही की स्थिति देख कर लगता नहीं कि प्रदेश सरकार इस मामले को गंभीरता से ले रही है. मुख्यमंत्री ने महज इतना ही कहा है कि दोषियों को बख्ता नहीं जाएगा, कड़ी से कड़ी सजा दी जाएगी. अमूमन ऐसे बयान किसी भी कांड के लिए सटीक होते हैं. राज्य के हर जिले में कन्या आश्रम हैं, जहां आदिवासी लड़कियों को पांचवीं तक आवासीय सुविधा के साथ पढ़ाई की सुविधा का दावा किया जाता है, लेकिन इन आश्रमों की बदहाली हमेशा ही राम भरोस रही है.
हिलाने वाली हकीकत
कांकेर के जिस नरहरपुर आश्रम से इस जघन्य कुकर्म कांड का खुलासा हुआ है, उस आश्रम का हाल जानिए. एक ओर आश्रम के मुख्य द्वार और कमरों में चिटकनी तक नहीं थी, वहीं आश्रम से अधीक्षिका हमेशा नदारद रहती थी. कुल मिलाकर इन बच्चों का रखवाला आश्रम में कोई नहीं होता था. यह तथ्य जांच में धीरे-धीरे सामने आ रहे हैं. नरहरपुर के आदिमजाति कन्या आश्रम में रात होते ही बच्चे अपने कमरों में जाकर सो जाते थे. इसी दौरान अविवाहित शिक्षाकर्मी मन्नूराम गोटी और चौकीदार दीनानाथ नागेश बच्चों के बिस्तर में आकर सारी रात हैवानियत का नंगा नाच खेलते थे. जांच में यह बात सामने आई की इन आरोपियों ने बच्चों को इस घृणित काम को सेक्स एजूकेशन का नाम दिया हुआ था. वह बच्चों के साथ कुकर्म करते समय उन्हें शारीरिक अंगों की भाषा पढ़ाने वाले अंदाज में बताते भी थे. वहीं बच्चों ने इसे अपनी पढ़ाई के अन्य पीरियडों की तरह ही लिया और वह जाने अनजाने इस अत्याचार को सहते रहे. बच्चों के मन में पीड़ा के बावजूद यह बात घर कर गई थी कि उन्हें अगले माह परीक्षा के बाद अपने गांव के स्कूल में चले जाना है. इसी के चलते आश्रम में वर्षों से बच्चों के साथ चल रहा यह अमानवीय व्यवहार प्रकाश में नहीं आया.
कच्चे धागे से बांधते थे दरवाजे
आश्रम के कमरों में दरवाजों में चिटकनी नहीं होने के कारण बच्चे अपने कमरे के दरवाजे में धागा लपेटकर रखते थे, ताकि कोई उनके कमरे में न आ सके, लेकिन उन मासूमों को नहीं मालूम था कि यह कच्चा धागा उनकी अस्मत को नहीं बचा सकता था.
टटोल कर जानते थे कौन लुट रहा है अस्मत
अपने शिक्षक और चौकीदार को यह बच्चे घना अंधेरा होने के कारण टटोलकर पहचान लेते थे कि उनके साथ सोने वाला उनका शिक्षक है या चौकीदार. अपने टीचर के मोटे हाथ के चलते वह पहचानते थे और चौकीदार को वह पतले हाथों के चलते पहचान लेते थे. इसकी जानकारी बच्चों ने पूछताछ में दी है.
संजय स्वदेश समाचार विस्फोट के संपादक हैं.
स्त्रोत : जनज्वार
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