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Wednesday 13 March 2013

राजस्थान में तीसरे मोर्चे के गठन की असलियत


राजस्थान में तीसरे मोर्चे के गठन की असलियत

डॉ. किरोड़ी लाल मीणा ने उन फ्लॉप राजनेता पीए संगमा का दामन थामा है, जो स्वयं उन ईसाई आदिवासी जातियों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो हिन्दू धर्म को बदलकर भी अजजा कोटे का लाभ उठा रही हैं। ऐसे में डॉ. मीणा का आदिवासियों का राष्ट्रीय नेता बनने या राजस्थान के सभी आदिवासियों का नेता बनने और राजस्थान के सीएम बनने का सपना पहली ही सीढी पर टूटता नजर आ रहा है।

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

भारतीय जनता पार्टी की वसुन्धरा राजे राजस्थान सरकार में केबीनेट मंत्री रहे डॉ. किरोड़ी लाल मीणा को भाजपा से निकाले जाने के बाद अपने क्षेत्र में डॉ. मीणा ने ये सिद्ध करने का प्रयास किया कि उनकी इच्छा या उनके समर्थन के बिना उनके क्षेत्र में कोई भी पार्टी जीत नहीं सकती है। वे इसमें कुछ सीमा तक सफल भी रहे और अपनी अपनढ पत्नी को कॉंग्रेस की अल्पमत की अशोक गहलोत सरकार में राज्य मंत्री बनवाकर अपनी राजनैतिक ताकत को सिद्ध भी किया।

प्रारंभ से ही इसके साथ-साथ डॉ. मीणा ने अपने आप को राजस्थान की मीणा अजजा का स्वयंभू नेता सिद्ध करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी, जिसके एवज में डॉ. मीणा को मीणाओं ने अनेक बार, अनेक क्षेत्रों से लोकसभा और विधानसभा में पहुँचाकर अपना पुरजोर समर्थन भी दिया। इसी बीच डॉ. मीणा के नेतृत्व में मीणाओं का गुर्जर जाति से टकराव हुआ। जिसमें गुर्जरों के अलावा अनेक मीणा भी मारे गये। इसके उपरान्त भी डॉ. मीणा सबकुछ भुलाकर राजनीति के लिये गुर्जरों से हाथमिलाकर अपनी राजनीति की नयी पारी की शुरुआत करने निकले। जिसके तहत उन्होंने दक्षिणी राजस्थान में आदिवासी बहुल इलाके में अपनी गोटियॉं बिछायी, लेकिन स्थानीय नेताओं के वर्चस्व के कारण इसमें वे पूरी तरह से सफल नहीं हो सके और अन्तत: उन्हें उस क्षेत्र से बेदखल करके भगा दिया गया।

इसके विरोध में डॉ. मीणा ने अनशन का सहारा लिया, जिसमें राज्य मंत्री पद पर आसीन उनकी पत्नी ने भी साथ दिया और अन्तत: इसी के चलते उनकी पत्नी को राज्य मंत्री का पद गंवाना पड़ा। कुल मिलाकर स्थिति ये है कि प्रारंभ में संघ के आदर्शों पर चलने वाले डॉ. किरोड़ी लाल मीणा ने भाजपा और कॉंग्रेस दोनों ही सरकारों में पद और सत्ता का लुत्फ उठाया और इस बीच दोनों ही सरकारों की आलोचना भी की, ऐसे में किसी भी बड़े दल में उनकी पटरी बैठना नामुमकिन हो गया। ऐसे हालात में स्वाभाविक है कि डॉ. मीणा अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिये अपनी निजी राजनैतिक जमीन तैयार करने में जुट गये। लम्बे समय तक इस बारे में बातें करने के बाद गत 28 फरवरी को राजनीति पिटारा खोला तो आम भोली-भाली जनता को तो कुछ समझ में नहीं आ रहा, लेकिन प्रबुद्ध मतदाता का डॉ. मीणा से माहभंग हो गया है।

आखिर डॉ. मीणा से मोहभंग के क्या कारण हैं? सबसे बड़ी बात तो ये कि डॉ. मीणा ने कोई नयी पार्टी नहीं बनायी, बल्कि पूर्वी भारत के एक फ्लॉप नेता पीए (पूर्ण ऐजिटक) संगमा की पार्टी ‘नेशनल पीपुल्स पार्टी’ का दामन थाम लिया। जिससे उनकी नयी पार्टी बनाने की बात झूठी साबित हो गयी। यही नहीं डॉ. मीणा ने ऐसे   नेता को अपना नेता माना है, जो स्वयं ही आज राष्ट्रीय स्तर पर एक अनाकर्षक व्यक्तित्व हैं। यही नहीं डॉ. मीणा ने इस बात पर जरा भी गौर नहीं किया कि अजा एवं अजजा को आरक्षण जातिगत भेदभाव के कारण हुए सामाजिक तिरस्कार और पिछड़ेपन के कारण सरकार में अपना प्रतिनिधित्व प्रदान करने के लिये दिया गया है। ऐसे में कुछ आदिम जातियॉं हिन्दू धर्म की जातिवादी व्यवस्था के दुष्चक्र से मुक्ति पाने के लिये ईसाई धर्म ग्रहण कर चुकी हैं, जहॉं पर कोई जाति नहीं होती है और इन धर्म परिवर्तित जातियों की संतानों को बचपन से ही अंग्रेजी में पारंगत करके और ईसाई धर्म ग्रहण करने के उपरान्त भी पूर्ववर्ती हिन्दू धर्म की जाति के आधार पर अजजा कोटे का लाभ दिलाया जाता है। ऐसे में ये धर्म परिवर्तित ईसाई अजजा के लोग राष्ट्रीय स्तर पर अजजा वर्ग के राष्ट्रीय कोटे का सत्तर फीसदी हड़प रहे हैं। जिसका बिहार, म. प्र., छत्तीसगढ, गुजरात सहित राजस्थान के गैर मीणा आदिवासियों द्वारा कड़ा विरोध किया जाता रहा है और लम्बे समय से ये मांग की जा रही है कि ईसाई धर्म ग्रहण कर चुके लोगों का आदिवासी दर्जा समाप्त किया जाये।

इतना होने के उपरान्त भी डॉ. मीणा ने उन पीए संगमा का दामन थामा है, जो उन ईसाई आदिवासियों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो हिन्दू धर्म को बदलकर भी अजजा कोटे का लाभ उठा रहे हैं। ऐसे में डॉ. मीणा का आदिवासियों का राष्ट्रीय नेता बनने या राजस्थान के सभी आदिवासियों का नेता बनने का सपना पहली ही सीढी पर टूटता नजर आ रहा है। व्यक्तिगत रूप से मेरे पास म. प्र., छत्तीसगढ, गुजरात आदि पड़ोसी राज्यों से अनेक मित्रों के फोन आ रहे हैं कि ‘‘डॉ. किरोड़ी लाल मीणा जी को समझाओ वे क्यों अपने और मीणा जाति के भविष्य पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं?’’ गैर मीणा आदिवासी डॉ. मीणा के इस कदम से भयंकर रूप से नाराज हैं। जिसका नुकसान उन्हें भुगतना होगा और उन्हें अपनी गलती का अहसास हो जायेगा, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होगी।

इसके अलावा डॉ. मीणा लोक सभा सदस्य हैं, इस कारण इस बात को जानते हैं कि 28 फरवरी को संसद में बजट पेश किया जाता है तो मीडिया का ध्यान और सभी लोगों का सारा ध्यान बजट पर आकर्षित रहता है। इस बात पर ध्यान किये बिना डॉ. मीणा ने 28 फरवरी को कथित रूप से अपनी पार्टी की घोषणा की, जिसकी खबर पूरी तरह से पिट गयी। मीडिया के पास बजट के आगे इस खबर को प्रसारित या प्रकाशित करने के लिये समय और स्थान ही नहीं बचा। इसके अलावा डॉ. मीणा केवल और केवल आदिवासियों की बात कर रहे हैं, जबकि लोकतन्त्र में चुनाव एक मात्र वर्ग या जाति के आधार पर नहीं जीते जाते। चुनाव जीतने के लिये समाज के अनेक तबकों को साथ लेकर चलना होता है।

Tuesday 15 January 2013

छत्तीसगढ़ में 11 आदिवासी लड़कियों से रेप, यह एक खबर थी, जो छप गयी और दब गयी|

यह खबर निम्न साइट्स पर भी उपलब्ध है :-

1-हस्तक्षेप : एक ख़बर जो छप गयी और दब भी गयी क्योंकि…..
2-जनज्वार : स्त्री उत्पीड़न के जातिवादी सरोकार
3-आवाज़-ए-हिन्द : 11 आदिवासी लड़कियों से रेप, यह खबर छप गयी और दब गयी!
4-आर्यवर्त : 11 आदिवासी लड़कियों से रेप, कहाँ गयी खबर ??
5-खबरकोश : 11 आदिवासी लड़कियों से रेप, यह खबर छप गयी और दब गयी
6-जनज्वार : स्त्री उत्पीड़न के जातिवादी सरोकार
7-प्रेस नोट डॉट इन : 11 आदिवासी लड़कियों से रेप, यह खबर छप गयी और दब गयी
8-रजनामा : 11आदिवासी लड़कियों से रेप की खबर छपी भी और दबी भी !
9-जर्नलिस्ट कम्युनिटी : 11 आदिवासी लड़कियों से रेप की खबर, जो दब गई
10-क्रांति 4 पीपुल : 11 आदिवासी लड़कियों से रेप, यह खबर छप गयी और दब गयी

कांकेर| छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल कांकेर जिले में 11 आदिवासी बच्चियों से बलात्कार का सनसनीखेज मामला सामने आया है| घटना नरहरपुर ब्लॉक के झलियामारी गांव स्थित कन्या आश्रम का है| जहां लगभग दो सालों से 11 आदिवासी नाबालिग बच्चियों से हर रात बलात्कार किया जा रहा था| पुलिस ने आरोपी शिक्षाकर्मी मन्नूराम गोटा और चौकीदार दीनानाथ को गिरफ्तार कर लिया है| इसके अलावा आश्रम की अधीक्षिका बबीता मरकाम को भी निलंबित कर जांच शुरु की गई है| पुलिस का कहना है कि दोनों आरोपी लंबे समय से आदिवासी बच्चियों के साथ बलात्कार कर रहे थे| बच्चियां डर के मारे इस बात को किसी से बता नहीं पा रही थी| शुक्रवार 05 जनवरी, 13 को बच्चियों ने बलात्कार की शिकायत महिला एवं बाल विकास अधिकारी को की| इसके बाद डीएम अलरमेल मंगई डी ने तत्काल मामले की जांच की और शिकायत को सही पाया| इसके बाद नरहरपुर थाने में शिक्षाकर्मी मन्नूराम गोटा और चौकीदार दीनानाथ के खिलाफ भादसं की धारा 376, 2ख एवं 34 के तहत मामला दर्ज किया गया|

यह एक खबर थी, जो छप गयी और दब गयी|

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

अखबारों में 11 आदिवासी लड़कियों के साथ हुए बलात्कार की छोटी सी ये खबर छपी| अत: यह एक आम खबर थी, जो छप गयी और दब गयी| बात-बात पर बयान देने वाली भारत के राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्षा ममता शर्मा की आँख में इस खबर को पढकर आंसू नहीं छलके, न आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविन्द केजरीवाल को इस घटना में कोई अनहोनी, अन्याय या शोषण की बात दिखी! अन्ना हजारे भी इस घटना के बाद अनशन पर बैठने के बजाय मौन साधे बैठे हैं| प्रतिपक्ष की नेता सुषमा स्वराज, जो बात-बात पर संसद में महिलाओं के अधिकारों के लिये सशक्त तरीके से बोलती देखी जाती हैं, उनको और उनकी पार्टी को ये घटना बोलने लायक नजर नहीं आयी| सारी शक्तियों की केन्द्र और सत्ताधारी गठबन्धन की प्रमुख सोनिया गांधी, प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह और राहुल गॉंधी भी इस पर एक शब्द नहीं बोले! खुद को हिन्दुत्व और संस्कृति के ठेकेदार मानने वाले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, विश्‍व हिन्दू परिषद, बजरंद दल, दुर्गा वाहिनी जैसे अनेक हिन्दूवादी संगठन भी इस घटना पर मौन साधे हुए हैं| बाबा रामदेव और श्रीश्री रविशंकर की आँख में भी आदिवासी कन्याओं के साथ घटित घटना से आँसू की एक बंद भी नहीं टपकी| सुप्रीम कोर्ट जो राष्ट्रहित में बात-बात पर संज्ञान लेकर कार्यवाही करता रहता है, उसके न्यायमूर्तियों को भी आदिवासी लड़कियों के साथ लगतार वर्षों तक हुए बलात्कार में कुछ भी अनहोनी नजर नहीं आयी! भय, भूख और भ्रष्टाचार से मुक्त प्रशासन देने की वकालत करने सत्ता हासिल करने वाली भाजपा की छत्तीसगढ में करीब एक दशक से सरकार है, जिसके राज में हर दिन आदिवासियों के खिलाफ लगातार अत्याचार होते रहते हैं| जिनमें सोनी सोढी का मामला भी बहशी दरिन्दों की कहानी खुद-ब-खुद बयां करता है| इस या उस घटना पर भाजपा के नेता तो मौन हैं ही, प्रदेश सरकार एवं प्रशासन स्वयं आदिवासियों पर अत्याचार कर रहे है| लेकिन इस सबसे दुर्भाग्यपूर्ण तो ये है कि आदिवासियों के तथाकथित समाज सेवक, राजनेता, जननेता, कर्मचारी नेता और ब्यूरोक्रेट्स केवल मौन साधे हुए हैं| आखिर क्यों? क्या आदिवासियों के इंसान होने पर शक है? क्या आदिवासी असंवेदनशील होते हैं? क्या आदिवासियों का कोई नेतृत्व नहीं है| इस सब का मतलब ये है कि आदिवासियों को जब चाहो, जहॉं चाहो, जैसे चाहो इस्तेमाल करो और भूल जाओ? दिल्ली में एक लड़की से गैंग रैप होने पर, इसे मीडिया इस प्रकार से प्रसारित और प्रचारित किया किया गया है, मानो कोई राष्ट्रीय आपदा आ गयी है| देश के तथाकथित बड़े लोग इस प्रकार से पेश आते हैं, मानो पूरा देश हिल रहा है| भाजपा की ओर से संसद का विशेष-सत्र बुलाये जाने की मांग उठने लगती है| लेकिन दर्जनों आदिवासी लड़कियों को हर दिन वर्षों तक हवस का शिकार बनाने की अन्दर तक हिला देने वाली क्रूरतम और अमानवीय घटना मीडिया, सामाजिक कार्यकर्ताओं, राजनेताओं, ब्यूराके्रट्स, बुद्धिजीवियों, धर्म व संस्कृति के ठेकेदारों और न्यायपालिका सहित किसी के लिये भी चिन्ता का विषय नहीं है! आखिर क्यों? इसके लिये कोई तो जिम्मेदार होगा? केवल इतना कह देने से काम नहीं चल सकता कि लोगों की संवेदनाएँ समाप्त हो गयी हैं या देश पर मनुवादियों का कब्जा है, इसलिये आदिवासियों को ये सब तो सहना ही होगा! सवाल ये है कि संवेदनाएँ समाप्त क्यों हो गयी हैं या देश पर मनुवादी ताकतों का कब्जा क्यों है? मनुवादियों की धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक गुलामी की बेड़ियों से मुक्ति के लिये हमने आजादी के बाद से आज तक किया क्या है? यदि कुछ भी नहीं किया तो मनुवादी आपको क्यों मुक्त करेंगे? सच तो ये है, इसके लिये और कोई नहीं, बल्कि आदिवासी राजनेता और बड़े-बड़े अफसर जिम्मेदार हैं, जिन्हें सिर्फ और सिर्फ अपने व्यक्तिगत विकास और सुख-सुविधाओं की परवाह है, उन्हें अपने वर्ग और लोगों की कोई परवाह नहीं है| जो केवल लाल बत्तियों और वातानुकूलित सुविधाओं के भूखे हैं| जो संविधान द्वारा प्रदत्त आरक्षण का तो लाभ उठा रहे हैं, लेकिन वे इस बात को भूल गये हैं कि उन्हें सरकार और प्रशासन में प्रदान किया गया आरक्षण मात्र व्यक्तिगत विकास करने, सम्पत्ति और एश-ओ-आराम जुटाने के लिये नहीं, बल्कि अपने वर्ग का पूरी संवैधानिक तथा वैधानिक ताकत के साथ प्रतिनिधित्व करने के लिये दिया गया है|

इस घटना की गहराई से पड़ताल की है, समाचार विस्फोट के श्री संजय स्वदेश ने और अन्दर तक हिला देने वाली सच्चाई आपके सामने यहॉं पेश है| यदि हम में से किसी का भी जमीर जिन्दा है, हमें आदिवासी होने का फक्र या जरा भी शर्म है तो हमें इसे पढकर कम से कम चिरनिद्रा से जागने का प्रयास तो करना चाहिये| आज नहीं तो कल सबका नम्बर आने वाला है| एसपी राजेश मीणा को जेल में डालकर राजस्थान की सबसे ताकतवर समझी जाने वाली मीणा जनजाति के लोगों को भी मनुवादियों ने एक झटके में उनकी औकात बता दी|
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सेक्स शिक्षा के नाम पर हर रात होता था यौन शोषण
(छत्तीसगढ़ आदिवासी कन्या छात्रावास बलात्कार काण्ड)

कन्या छात्रावास जिन्हें छत्तीसगढ की हिन्दूवादी भारतीय जनता पार्टी की सरकार आश्रम का नाम देती है, उस कन्या छात्रावास के कमरों में दरवाजों में चिटकनी नहीं होने के कारण आदीवासी लड़कियॉं अपने कमरे के दरवाजे में धागा लपेटकर रखते थी, ताकि रात्री में कोई उनके कमरे में न आ सके, लेकिन उन मासूमों को नहीं मालूम था कि यह कच्चा धागा उनकी अस्मत को नहीं बचा सकता था...! समाचार विस्फोट के श्री संजय स्वदेश द्वारा कड़े परिश्रम से जुटाये गये तथ्यों पर आधारित विश्‍लेषण!


अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार ने मध्यप्रदेश को तोड़कर अलग से छत्तीसगढ राज्य का गठन इसलिये किया गया था, जिससे कि इस राज्य में विकास से पिछड़ गये आदिवासियों का विकास हो सके और उनके हालात सुधारे जा सकें| झारखण्ड राज्य भी इसी मकसद से बनाया गया था|

लेकिन आदिवासी बाहुल्य राज्य छत्तीसगढ़ के आदिवासियों की भावी पीढ़ितों का भविष्य कैसा है? यह प्रदेश में हाल में खुलासे हुए आश्रम कांड में ११ बच्चियों से कुकर्म की घटना से अनुमान लगाया जा सकता है! कुकर्म की शिकार मासूम इतनी भोली और कम उम्र की बालिका हैं कि उन्हें वे ये भी नहीं जानती हैं कि उनके साथ हुआ क्या है? छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले के नरहरपुर स्थित आदिवासी आश्रम में कई वर्षों से यौन शिक्षा (सेक्स एजूकेशन) बताकर आदिवासी लड़कियों का यौन शोषण शिक्षक और चौकीदार करते रहे|

कांकेर छात्रावास बलात्कार का आश्रम

श्री संजय स्वदेश जो कुछ खोजा है, उसका आशय और निष्कर्ष है कि करीब करीब छह माह पहले की बात है| इस आश्रम की एक (आदिवासी) मासूम बच्ची गर्भवती हो जाती है, वह भी महज करीब दस साल की उम्र में, लेकिन उसमें गर्भ सहने की क्षमता नहीं! परिणामस्वरूप उस मासूम को असमय मौत की नींद सुला दिया जाता है, लेकिन प्रशासन नहीं जागता है| पीड़ित गरीब किन्तु अपने मान-सम्मान को बचाना अपना धर्म समझने वाला आदिवासी परिवार इस क्रूर हादसे पर लोक लिहाज के कारण मौन साध लेता है, तो भारतीय जनता पार्टी की सरकार का प्रशासन यह कहकर अपने आपको पाक साफ घोषित करता है कि उस मासूम की मौत दूसरी शारीरिक बीमारी और एनीमिया कारण हुई थी|

घटना के खुलासे के बाद मृत लड़की की मां और चाचा ने मौत की नींद सो चुकी गर्भवती लाडली का गर्भावस्था का फोटो स्थानीय मीडिया को उपलब्ध कराया है| हालांकि यह लिखना बेशर्मी की हद होगी, लेकिन सच्चाई के लिए ही सही कह कहना और लिखना जरूरी होता है कि एनीमिया और गर्भावस्था के कारण फूले पेट के आकार में अंतर होता है| फोटो देख कर हकीकत समझा जा सकता है| (बच्ची और उसके परिवार की पहचान उजागर नहीं हो इस बात के कारण फोटो प्रकाशित नहीं किया जा सकता है|) चूंकि मामला दुष्कर्म का है और कानून की तकनीक के अनुसार जब तक मेडिकल में पुष्टि नहीं होती, आरोपी पाक साफ होंगे|

दुष्कर्मियों की हवस की आग बुझाते-बुझाते मौत की नींद सो चुकी गर्भवती मासूम आदिवासी बच्ची का तो अब मेडिकल नहीं हो सकता है, लेकिन ११ अबोध बालिकाओं की मेडिकल में बलात्कार किये जाने की पुष्टि हो चुकी है| लिहाजा, अबोध आदिवासी बालिकाओं के नारकीय जीवन की पीड़ा का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है, बशर्ते कि किसी की संवेदनाएँ जिन्दा हों? 

छत्तीसगढ राज्य का प्रशासन ऐसे मामलों में कितना गंभीर है, इसका अनुमान इस बात से लग सकता है कि जब छह माह पहले इस मुद्दे को लेकर पंचायत बैठी और विभाग के अधिकारी के पास मामला पहुंचा तो कुकर्म के आरोपी शिक्षक से लिखित में माफी मांगने भर से उसे छोड़ दिया गया था| अब मामला उजागर हो गया है तो छत्तीसगढ़ के तमाम कन्या आश्रमों (छात्रावासों में) से धड़ाधड़ पुरुषकर्मी हटाए जा रहे हैं| पर हालात देखकर ऐसा नहीं लगते हैं कि इससे भविष्य में भी ये अबोध आदिवासी बालिकाएं कुकर्मियों की हवस की आंच से सुरक्षित रहेंगी! 

इस तरह का मामला कुछ वर्ष पहले भी छत्तीसगढ के एक अन्य आश्रम में भी उजागर हुआ था, लेकिन तब भी बात आई गई हो गई थी| अभी तक ही की स्थिति देखकर लगता नहीं कि प्रदेश सरकार इस मामले को गंभीरता से ले रही है| 

मुख्यमंत्री ने महज इतना ही कहा है कि दोषियों को बख्ता नहीं जाएगा, कड़ी से कड़ी सजा दी जाएगी| अमूमन ऐसे बयान किसी भी कांड के लिए सटीक होते हैं| राज्य के हर जिले में कन्या आश्रम हैं, जहां आदिवासी लड़कियों को पांचवीं तक आवासीय सुविधा के साथ पढ़ाई की सुविधा का दावा किया जाता है, लेकिन इन आश्रमों की बदहाली हमेशा ही राम भरोस रही है|

हिलाने वाली हकीकत 

कांकेर के जिस नरहरपुर आश्रम से इस जघन्य कुकर्म कांड का खुलासा हुआ है, उस आश्रम का हाल जानिए| एक ओर आश्रम के मुख्य द्वार और कमरों में चिटकनी तक नहीं थी, वहीं आश्रम से अधीक्षिका हमेशा छात्रावस से नदारद रहती थी| कुल मिलाकर इन बच्चियों का रखवाला आश्रम में कोई नहीं होता था| यह तथ्य जांच में धीरे-धीरे सामने आ रहे हैं| नरहरपुर के आदिमजाति कन्या आश्रम में रात होते ही बच्ची अपने कमरों में जाकर सो जाती थी| 

इसी दौरान अविवाहित शिक्षाकर्मी मन्नूराम गोटी और चौकीदार दीनानाथ नागेश बच्चों के बिस्तर में आकर सारी रात हैवानियत का नंगा नाच खेलते थे| जांच में यह बात सामने आई कि इन आरोपियों ने बच्चियों को इस घृणित काम को सेक्स एजूकेशन का नाम दिया हुआ था| वह बच्चियों के साथ कुकर्म करते समय उन्हें शारीरिक अंगों की भाषा पढ़ाने वाले अंदाज में बताते भी थे| वहीं मासूम बच्चियों ने भी इसे अपनी पढ़ाई के अन्य पीरियडों की तरह ही लिया और वह जाने अनजाने इस अत्याचार को वर्षों तक सहते रही| बच्चियों के मन में पीड़ा के बावजूद यह बात घर कर गई थी कि उन्हें अगले माह परीक्षा के बाद अपने गांव के स्कूल में चले जाना है| इसी के चलते आश्रम में वर्षों से बच्चियों के साथ चल रहा यह अमानवीय व्यवहार इतने वर्षों तक प्रकाश में नहीं आ सका|

कच्चे धागे से बांधते थे दरवाजे 

आश्रम के कमरों में दरवाजों में चिटकनी नहीं होने के कारण बच्ची अपने कमरे के दरवाजे में धागा लपेटकर रखते थे, ताकि कोई उनके कमरे में न आ सके, लेकिन उन मासूमों को नहीं मालूम था कि यह कच्चा धागा उनकी अस्मत को नहीं बचा सकता था|

टटोल कर जानते थे, कौन है अस्मत का लुटेरा 

अपने शिक्षक और चौकीदार को ये बच्चियॉं रात्री कें घने अंधेरे में केवल टटोलकर पहचान लेते थे कि उनके साथ सोने वाला उनका शिक्षक है या चौकीदार| अपने टीचर के मोटे हाथ के चलते वह पहचानते थे और चौकीदार को वह पतले हाथों के चलते पहचान लेते थे| इस प्रकार की जानकारी उन्होंने पूछताछ में दी है|
साभार : संजय स्वदेश, समाचार विस्फोट एवं जनज्वार|

Friday 11 January 2013

आश्रम में लगता था सेक्स पीरियड!

छत्तीसगढ़ छात्रावास बलात्कार काण्ड

आश्रम के कमरों में दरवाजों में चिटकनी नहीं होने के कारण बच्चे अपने कमरे के दरवाजे में धागा लपेटकर रखते थे, ताकि कोई उनके कमरे में न आ सके, लेकिन उन मासूमों को नहीं मालूम था कि यह कच्चा धागा उनकी अस्मत को नहीं बचा सकता था...

संजय स्वदेश 

आदिवासी बाहुल्य राज्य छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के भावी पीढ़ितों का भविष्य कैसा है यह प्रदेश में हाल में खुलासे हुए आश्रम कांड में 11 बच्चियों से कुकर्म की घटना से अनुमान लगता है. कुकर्म की शिकार मासूम ये भी नहीं जानती हैं कि उनके साथ हुआ क्या है. छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले के नरहरपुर स्थित आदिवासी आश्रम में वर्षों से बच्चों को सेक्स एजूकेशन बता कर उनका शारीरिक शोषण आरोपी शिक्षक और चौकीदार करते रहे.
कांकेर छात्रावास : पढाई नहीं बलात्कार का आश्रम

करीब करीब छह माह पहले की बात है. इस आश्रम की एक मासूम गर्भवती भी होती है, महज करीब दस साल की उम्र में गर्भ सहने की क्षमता नहीं रखने वाली मासूम मौत की नींद सो जाती है, लेकिन प्रशासन नहीं जगता है. पीड़ित आदिवासी परिवार लोक लिहाज के कारण मौन साध लेता है, तो प्रशासन यह कह कर अपने आप का पाक साफ बताता है कि उस मासूम की मौत दूसरी बीमारी और एनीमिया से हुई थी. 

घटना के खुलासे के बाद मृत लड़की की मां और चाचा ने मौत की नींद सो चुकी गर्भवती लाडली का गर्भावस्था का फोटो मीडिया को उपलब्ध कराया. हालांकि यह लिखना बेशर्मी की हद होगी, लेकिन सच्चाई के लिए ही सही कह कहना जरूरी होता है कि एनीमिया और गर्भावस्था के फूले पेट के आकार में अंतर होता है. फोटो देख कर हकीकत समझा जा सकता है. चूंकि मामला दुष्कर्म का है और कानून की तकनीक के अनुसार जब तक मेडिकल में पुष्टि नहीं होती, आरोपी पाक साफ होंगे.

दुष्कर्मियों के हवस के आग से मौत की नींद सो चुकी गर्भवती मासूम का तो अब मेडिकल नहीं हो सकता है, लेकिन 11 अबोध बालिकाओं की मेडिकल में मामले की पुष्टि हो चुकी है. लिहाजा, अबोध बालिकाओं के नरकीय अनुभव का अनुमान लगाया जा सकता है. 

प्रशासन ऐसे मामलों में कितना गंभीर है, इसका अनुमान इस बात से लग सकता है कि जब छह माह पहले इस मुद्दे को लेकर पंचायत बैठी और विभाग के अधिकारी के पास मामला पहुंचा तो कुकर्म के आरोपी शिक्षक से लिखित में माफी मांगने भर से उसे छोड़ दिया गया था. अब मामला उजागर हो गया है तो छत्तीसगढ़ के तमाम कन्या आश्रमों से धड़ाधड़ पुरुषकर्मी हटाए जा रहे हैं. पर हालात देख कर ऐसा नहीं लगते हैं कि इससे भविष्य में भी ये अबोध बालिकाएं कुकर्मियों के हवस की आंच से सुरक्षित रहेंगी. 

इस तरह का मामला कुछ वर्ष पहले भी प्रदेश के एक आश्रम से उजागर हुआ था, लेकिन तब भी बात आई गई हो गई थी. अभी तक ही की स्थिति देख कर लगता नहीं कि प्रदेश सरकार इस मामले को गंभीरता से ले रही है. मुख्यमंत्री ने महज इतना ही कहा है कि दोषियों को बख्ता नहीं जाएगा, कड़ी से कड़ी सजा दी जाएगी. अमूमन ऐसे बयान किसी भी कांड के लिए सटीक होते हैं. राज्य के हर जिले में कन्या आश्रम हैं, जहां आदिवासी लड़कियों को पांचवीं तक आवासीय सुविधा के साथ पढ़ाई की सुविधा का दावा किया जाता है, लेकिन इन आश्रमों की बदहाली हमेशा ही राम भरोस रही है. 

हिलाने वाली हकीकत 
कांकेर के जिस नरहरपुर आश्रम से इस जघन्य कुकर्म कांड का खुलासा हुआ है, उस आश्रम का हाल जानिए. एक ओर आश्रम के मुख्य द्वार और कमरों में चिटकनी तक नहीं थी, वहीं आश्रम से अधीक्षिका हमेशा नदारद रहती थी. कुल मिलाकर इन बच्चों का रखवाला आश्रम में कोई नहीं होता था. यह तथ्य जांच में धीरे-धीरे सामने आ रहे हैं. नरहरपुर के आदिमजाति कन्या आश्रम में रात होते ही बच्चे अपने कमरों में जाकर सो जाते थे. इसी दौरान अविवाहित शिक्षाकर्मी मन्नूराम गोटी और चौकीदार दीनानाथ नागेश बच्चों के बिस्तर में आकर सारी रात हैवानियत का नंगा नाच खेलते थे. जांच में यह बात सामने आई की इन आरोपियों ने बच्चों को इस घृणित काम को सेक्स एजूकेशन का नाम दिया हुआ था. वह बच्चों के साथ कुकर्म करते समय उन्हें शारीरिक अंगों की भाषा पढ़ाने वाले अंदाज में बताते भी थे. वहीं बच्चों ने इसे अपनी पढ़ाई के अन्य पीरियडों की तरह ही लिया और वह जाने अनजाने इस अत्याचार को सहते रहे. बच्चों के मन में पीड़ा के बावजूद यह बात घर कर गई थी कि उन्हें अगले माह परीक्षा के बाद अपने गांव के स्कूल में चले जाना है. इसी के चलते आश्रम में वर्षों से बच्चों के साथ चल रहा यह अमानवीय व्यवहार प्रकाश में नहीं आया.

कच्चे धागे से बांधते थे दरवाजे 
आश्रम के कमरों में दरवाजों में चिटकनी नहीं होने के कारण बच्चे अपने कमरे के दरवाजे में धागा लपेटकर रखते थे, ताकि कोई उनके कमरे में न आ सके, लेकिन उन मासूमों को नहीं मालूम था कि यह कच्चा धागा उनकी अस्मत को नहीं बचा सकता था.
टटोल कर जानते थे कौन लुट रहा है अस्मत 
अपने शिक्षक और चौकीदार को यह बच्चे घना अंधेरा होने के कारण टटोलकर पहचान लेते थे कि उनके साथ सोने वाला उनका शिक्षक है या चौकीदार. अपने टीचर के मोटे हाथ के चलते वह पहचानते थे और चौकीदार को वह पतले हाथों के चलते पहचान लेते थे. इसकी जानकारी बच्चों ने पूछताछ में दी है.
संजय स्वदेश समाचार विस्फोट के संपादक हैं.
स्त्रोत : जनज्वार 

Thursday 10 January 2013

एसपी राजेश मीणा तो एक बहाना है! असली मकसद तो मीणा आदिवासियों को मिटाना है!!

मनुवादी किसी भी सूरत में आदिवासियों को ताकतवर होते हुए नहीं देख सकते हैं| उनके लिये यह असहनीय हो रहा है कि राजस्थान का पुलिस निदेशक एक आदिवासी अर्थात् मीणा है| जिसे बदनाम करने के लिये पुलिस को भ्रष्ट दिखाना और वो भी उसी की जाति के राजेश मीणा को भ्रष्टाचार और घूसखोर सिद्ध करना, क्या किसी की समझ में नहीं आ रहा है? केवल इतना ही नहीं राजस्थान की राज्यपाल पुलिस महानिदेशक को बुलाकर कहती हैं कि राज्य में स्त्रियों पर अत्याचार और पुलिस में भ्रष्टाचार बढ रहा है| ये बात गृह मंत्री की ओर से भी कही जा सकती थी, लेकिन जान बूझकर पुलिस महानिदेशक को दबाव में लाने और इस खबर को मीडिया के जरिये जनता के समक्ष लाने की सरकार की नीति को मीणा जनजाति के लोगों को समझना होगा और साथ ही इस बात को भी समझना होगा कि केवल बाबू बनने या एक पार्टी छोड़कर सत्ताधारी पार्टी का दामन थामकर लाल बत्ती प्राप्त कर लेने मात्र से आदिवासियों का उत्थान नहीं हो सकता! आदिवासी समाज की सेवा करनी है तो लालबत्ती नहीं, आदिवासियों की हरियाली की वफादारी की भावना को जिन्दा रखना होगा|
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

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यह आलेख निम्न साईट्स, न्यूज पोर्टल्स, ब्लोग्स और न्यूज पेपर्स पर भी प्रकाशित है :
1-आर्यवर्त पर शीर्षक-"एसपी राजेश मीणा तो एक बहाना है!"
3-आवाज़-ए-हिन्द पर शीर्षक-"एसपी राजेश मीणा तो एक बहाना है! असली मकसद तो मीणा आदिवासियों को मिटाना है!"
4-प्रेसपालिका न्यूज चैनल पर शीर्षक-"एसपी राजेश मीणा तो एक बहाना है! असली मकसद तो मीणा आदिवासियों को मिटाना है!"
5-आवाज़--हिन्द पर शीर्षक-"मीणा क्यों बहुतायत में दिखते हैं?"
5-हिमालय गौरव उत्तराखंड पर शीर्षक-"भारत में केवल और केवल मनुवादियों का कब्जा"
6-जागरण जंक्शन पर शीर्षक-"एसपी राजेश मीणा तो एक बहाना है! असली मकसद तो मीणा आदिवासियों को मिटाना है!"
7-नव भारत टाईम्स पर शीर्षक-"एसपी राजेश मीणा तो एक बहाना है!"
8-देशबंधु पर शीर्षक-"एसपी राजेश मीणा तो एक बहाना है! असली मकसद तो मीणा आदिवासियों को मिटाना है!"
9-प्रेसनोट डॉट इन पर शीर्षक-"एसपी राजेश मीणा तो एक बहाना है! असली मकसद तो मीणा आदिवासियों को मिटाना है!"
10-राजनामा पर शीर्षक-"एसपी राजेश मीणा तो एक बहाना है!"
11-टाईम्स हिंदी डॉट कॉम पर शीर्षक-"एसपी राजेश मीणा तो एक बहाना है! असली मकसद तो मीणा आदिवासियों को मिटाना है!!"
12-जर्नलिस्ट कम्यूनिटी पर शीर्षक-"राजेश एक बहाना है! असली मकसद तो मीणा आदिवासियों को मिटाना है!!
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पिछले दिनों राजस्थान के अजमेर जिले के पुलिस अधीक्षक पद पर तैनात राजेश मीणा को कथित रूप से अपने ही थानेदारों से वसूली करते हुए राजस्थान के भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने दलाल के साथ रंगे हाथ पकड़ा| यह कोई पहली घटना नहीं है, जिसमें किसी लोक सेवक को रिश्‍वत लेते हुए पकड़ा गया हो! हर दिन कहीं न कहीं, किसी न किसी लोक सेवक को रिश्‍वत लेते पकड़ा ही जाता है| ऐसे में किसी को रिश्‍वत लेते पकड़े जाने पर कोई भी आपत्ति नहीं होनी चाहिये| सरकार और प्रशासन अपने-अपने काम करते ही रहते हैं| इसी दिशा में हर एक राज्य का भ्रष्टाचार निरोधक विभाग भी अपना काम करता रहता है| इसी क्रम में राज्य की भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो भी अपना काम कर ही रही है|
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सबसे बड़ी आपत्ति यह है कि जिस दिन से राजेश मीणा को कथित रूप से घूस लेते हुए पकड़ा है, उसी दिन से स्थानीय समाचार-पत्रों में इस खबर को इस प्रकार से प्रसारित और प्रचारित किया जा रहा है, मानो केवल मीणा जनजाति के सम्पूर्ण अधिकारी और कर्मचारी ही चोर हैं, बाकी सारे के सारे दूध के धुले हुए हैं| राजस्थान की मीणा जनजाति सहित सारे देश के सम्पूर्ण जन जाति समाज में इस बात को लेकर भयंकर रोष व्याप्त है| रोष व्याप्त होने का प्रमुख कारण ये है कि राजेश मीणा की मीडिया ट्रायल की जा रही है, जबकि दक्षिणी राजस्थान में अपनी मजदूरी मांगने जाने वाले एक आदिवासी मीणा के उच्च जाति के एक ठेकेदार द्वारा सरेआम हाथ काट दिये जाने की सही और क्रूरतम घटना को सही तरह से प्रकाशित और प्रसारित करने में इसी मीडिया को अपना धर्म याद नहीं रहा|

इसके अलावा पिछले दिनों दलित परिवार के दो नवविवाहिता जोड़ों को मन्दिर से धक्के मारकर भगा देने की घटना को इसी मीडिया द्वारा जानबूझकर दबा दिया गया| भ्रूण हत्या के आरोपों में पकड़े जाने वाले उच्च जातीय डॉक्टरों के रंगे हाथ पकड़े जाने के उपरान्त भी खबर को अन्दर के पन्नों पर दबा दिया जाता है| जब पिछड़े वर्ग से आने वाले राजनेता महीपाल मदेरणा का प्रकरण सामने आया तो उसकी भी जमकर मीडिया ट्रायल की गयी| जबकि दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्ग के लोगों के विरुद्ध होने वाले अपराधों में पकड़े जाने वाले मनुवादी अपराधियों के क्रूर और घृणित अपराधों को जानबूझकर मीडिया द्वारा और प्रशासन द्वारा दबा दिया जाता है|

इन सब बातों का साफ और सीधा मतलब है कि चाहे कानून और संविधान कुछ भी कहता हो जो भी जाति या व्यक्ति मनुवादी व्यवस्था से टकराने का प्रयास करेगा उसे निपटाने मे मनुवादी मीडिया और प्रशासन एवं सत्ता पर काबिज मनुवादी कोई कोर कसर नहीं छोड़ेंगे| महीपाल मदेरणा और राजेश मीणा दोनों ही मामलों में मनुवादियों की ओर से पिछड़ों और आदिवासियों को यही संकेत दिया गया है| 

राजस्थान में मीणा जाति के बच्चे कड़ा परिश्रम करते हैं| उनके माता-पिता कर्ज लेकर, अपने बच्चों को जैसे-तैसे पढा-लिखाकर योग्य बनाते हैं| जब वे अफसर या कर्मचारी नियुक्त होते हैं तो उस वर्ग की आँखों में खटकने लगते हैं, जो सदियों से मलाई खाता आ रहा है और आज भी सत्ता की असली ताकत उसी के पास है| जबकि जानबूझकर के मीणा जनजाति को बदनाम किया जा रहा है और अफवाह फैलायी जाती है कि मीणा सभी विभागों में और सभी क्षेत्रों में भरे पड़े हैं| जबकि सच्चाई इसके ठीक उलट है| राजस्थान में आजादी से आज तक एक भी दलित या आदिवासी वकील को, वकीलों के लिये निर्धारित 67 फीसदी वकील कोटे से हाई कोर्ट का जज नियुक्त नहीं किया गया| इसका अर्थ क्या ये लगाया जाये कि दलित-आदिवासी वकील हाई कोर्ट के जज की कुर्सी पर बैठने लायक नहीं हैं या हाई कोर्ट के जज की कुर्सी दलित आदिवासियों के बैठने से अपवित्र होने का खतरा है या दलित-आदिवासियों को जज नियुक्त करने पर मनुवादियों को खतरा है कि उनकी मनमानी रुक सकती हैं| कारण जो भी हो, लेकिन राजस्थान हाई कोर्ट में अपवादस्वरूप पदोन्नति कोटे से एक मात्र यादराम मीणा के नाम को छोड़ दिया जाये तो आजादी के बाद से एक भी व्यक्ति सरकार को या जज नियुक्त करने वाले लोगों को ऐसा नजर नहीं आया, जिसे जज के पद पर नियुक्त किया जा सकता!

मीणा क्यों बहुतायत में दिखते हैं? इस बात को भी समझ लेना जरूरी है| चूँकि आदिवासी वर्ग के लोग सरल व भोली प्रवृत्ति के होते हैं, इस कारण वे मनुवादियों की जैसी चालाकियों से वाकिफ नहीं होते हैं और इसी का नुकसान राजस्थान की आदिवासी मीणा जनजाति के लोगों को उठाना पड़ रहा है| सबके सब अपने नाम के आगे ‘मीणा’ सरनैम लिखते हैं| जिसके चलते सभी लोगों को हर एक क्षेत्र में मीणा ही मीणा नजर आते हैं| यदि मीणा अपने गोत्र लिखने लगें, जैसे कि-मरमट, सेहरा, मेहर, धणावत, घुणावत, सपावत, सत्तावत, जोरवाल, बारवाड़, बमणावत आदि तो क्या किसी को लगेगा कि मीणा जाति के लोगों की प्रशासन में बहुतायत है, लेकिन अभी भी मीणा जनजाति के लोगों को इतनी सी बात समझ में नहीं आ पायी है|

यह तो एक बड़ा और दूरगामी सवाल है, जिस पर फिर कभी चर्चा की जायेगी| लेकिन फिलहाल राजस्थान की मजबूत और ताकतवर कही जाने वाली मीणा जनजाति की नौकरशाही को इस बात को समझना होगा कि वे इस मुगालते में नहीं रहें कि वे बड़े बाबू बन गये तो उन्होंने कोई बहुत बड़ा तीर मार लिया है| क्योंकि सारा देश जानता है कि राजस्थान की ही नहीं, बल्कि सारे देश की पुलिस व्यवस्था अंग्रेजों की बनायी पटरी पर चल रही है| जिसके तहत प्रत्येक पुलिस थाने की बोली लगती है| थानेदार उगाही करके एसपी को देता है और एसपी ऊपर पहुँचाता है, जिसको अन्नत: सत्ताधारी पार्टी को पहुँचाया जाता है| हर विभाग में इस तरह की उगाही होती है| पिछले दिनों एक एक्सईएन बतला रहे थे कि राजस्थान का प्रत्येक एक्सईन अपने चीफ इंजीनियर को हर माह पचास हजार रुपये पहुँचाता है, जिसमें से सीएमडी के पास से होते हुए हर माह मोटी राशी सरकार के पास पहुँचायी जाती है|

कहने का तात्पर्य यह है कि सरकारें स्वयं अफसरों से उगाही करवाती हैं और जब कभी कोई अफसर या अफसरों का कोई धड़ा नियम कानून या संविधान के अनुसार काम करने लगता है तो वही सरकार एक पल में ऐसे अफसरों को उनकी औकात दिखा देती है| कौन नहीं जानता कि किस-किस राजनेता का चरित्र कैसा है, लेकिन महीपाल मदेरणा को ठिकाने लगाना था तो लगा दिया| इसी प्रकार से जाट जाति के बाद राजस्थान में दूसरी ताकतवर समझी जाने वाली मीणा जनजाति के अफसरों को ठिकाने लगाने की राजेश मीणा से शुरूआत करके मीणा जाति के सभी अफसरों और कथित मीणा मुखियाओं को सन्देश दिया गया है कि यदि किसी ने अपनी आँख दिखाने का साहस किया तो उसका हाल राजेश मीणा जैसा होगा|

जहॉं तक इस प्रकार के मामले को मीडिया द्वारा उछाले जाने की बात है तो कोई भी नागरिक सूचना के अधिकार के तहत सरकार से पूछ सकता है कि उसकी ओर से किस-किस समाचार-पत्र को कितने-कितने करोड़ के विज्ञापन दिये गये हैं| जिन अखबारों को हर माह करोड़ों रुपये के विज्ञापन सरकार की ओर से भेंटस्वरूप दिये जाते हैं, उन समाचार-पत्रों की ओर से सरकार का हुकम बजाना तो उनका जरूरी धर्म है|

आजकल मीडिया व्यवसाय हो गया है| जिस पर भारत में केवल और केवल मनुवादियों का कब्जा है| मनुवादी किसी भी सूरत में आदिवासियों को ताकतवर होते हुए नहीं देख सकते हैं| उनके लिये यह असहनीय हो रहा है कि राजस्थान का पुलिस निदेशक एक आदिवासी अर्थात् मीणा है| जिसे बदनाम करने के लिये पुलिस को भ्रष्ट दिखाना और वो भी उसी की जाति के राजेश मीणा को भ्रष्टाचार और घूसखोर सिद्ध करना, क्या किसी की समझ में नहीं आ रहा है? केवल इतना ही नहीं राजस्थान की राज्यपाल पुलिस महानिदेशक को बुलाकर कहती हैं कि राज्य में स्त्रियों पर अत्याचार और पुलिस में भ्रष्टाचार बढ रहा है| ये बात गृह मंत्री की ओर से भी कही जा सकती थी, लेकिन जान बूझकर पुलिस महानिदेशक को दबाव में लाने और इस खबर को मीडिया के जरिये जनता के समक्ष लाने की सरकार की नीति को मीणा जनजाति के लोगों को समझना होगा और साथ ही इस बात को भी समझना होगा कि केवल बाबू बनने या एक पार्टी छोड़कर सत्ताधारी पार्टी का दामन थामकर लाल बत्ती प्राप्त कर लेने मात्र से आदिवासियों का उत्थान नहीं हो सकता! आदिवासी समाज की सेवा करनी है तो लालबत्ती नहीं, आदिवासियों की हरियाली की वफादारी की भावना को जिन्दा रखना होगा| एसपी राजेश मीणा तो एक बहाना है! असली मकसद तो मीणा आदिवासियों को मिटाना है|

आप अपनी प्रतिक्रिया ई-मेल के जरिये भेजेंगे तो मुझे अपासर प्रसन्नता होगी|