अन्ना एंड पार्टी (मशहूर नौटंकी, महाराष्ट्र वालों) का इरादा मनुवाद -ब्राहमणवाद को मजबूत करने का था...जाहिर सी बात है कि जो व्यवस्था किसी व्यक्ति को सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक रूप से संपन्न बनाये रखे, वह व्यक्ति उस व्यवस्था को त्यागना नहीं चाहेगा...मनुवाद या ब्राहमणवाद एक ऐसी ही व्यवस्था है, जिसमें चंद मुट्ठी भर लोग सदियों से लाभान्वित हो रहे हैं...बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर के कठोर एवं निरंतर संघर्ष ने बहुजनों को उनका हक़ दिलाने का सफल प्रयास किया...बाबा साहेब के आदर्शों को दलितों ने आगे बढाया और समाज में जागरूकता फैलाई...इसके चलते हाल ही के दशक में शूद्रों (OBC) को भी ब्राहमणवाद कि नीतियाँ समझ आने लगीं और वे साथ जुड़ने लगे...एक तरफ दलितों-शूद्रों की राजनैतिक दावेदारी बढ़ने लगी...तो दूसरी तरफ कई सभाएं और रैलियां होने लगीं, जिनमें दलित (SC,ST), शूद्र (OBC), बौद्ध, मुस्लिम्स ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया...एक बात स्पष्ट होती जा रही थी कि आने वाले समय में ये सभी एक-जुट होकर चुनाव लड़ेंगे...चूँकि इनकी तादात इतनी अधिक है कि ये लोग खुद की सरकार बनाकर, ब्राहमणवाद का खात्मा कर सकते हैं...यह बात सवर्ण भांप चुके थे...सवर्ण समझ गये थे की सत्ता कभी भी उनके हाथों से छिन सकती है...अब सवर्ण एक ऐसी व्यवस्था चाहते थे, जो की ब्राहमणवाद को बनाये रखे...अन्ना को चेहरा बनाकर, खेल चुरू हो गया...अन्ना एंड पार्टी, ब्राहमणवादी व्यवस्था ले ही आते, जिसमें बहुजनों को कोई भी प्रतिनिधित्व या आरक्षण नहीं था...किन्तु फिर से दलित, बहुजनों की ढाल बन कर सामने खड़ा हो गया, और ख़ुशी इस बात की है कि बहुजनों ने पूरा साथ दिया...अब जो भी लोकपाल आएगा, वह अन्ना एण्ड पार्टी के ब्राहमणवादी लोकपाल से भिन्न लोकपाल होगा, क्यूंकि अब इसमें सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व तय हो गया है और सवर्णों के निहित स्वार्थ धरे के धरे रह गये हैं...!
निष्कर्ष :- सवर्णों का ब्राहमणवादी लोकपाल अपने आप में संविधान के चारों स्तंभों को अपने नियंत्रण में लिए हुए, एक संप्रभु था !
1. अन्ना एण्ड पार्टी (सवर्णों) के ब्राहमणवादी लोकपाल में सीधे तौर पर यह व्यवस्था थी की चाहे सरकार कोई भी हो, उसे लोकपाल से डरकर रहना होगा, लोकपाल जब चाहे प्रधानमंत्री एवं सांसदों को जांच के शिकंजे में कस लेगा !
2. न्यायपालिका लोकपाल के अधीन होने से लोकपाल न्यायिक कार्यों में हस्तक्षेप कर सकेगा और न्याय-प्रक्रिया में लोकपाल की हिस्सेदारी तय हो जाएगी !
3. लोकपाल की खुद की एक जांच एजेंसी होगी, जिसके पास लाखों कर्मचारी होंगे, जिससे की लोकपाल खुद में ही एक सशक्त प्रशासन होगा, जो कि बाकी के सभी प्रशासनिक क्षेत्रों (विभागों) को सीधे तौर पर अपने नियंत्रण में रखेगा !
4. मीडिया, व्यापार एवं एनजीओ लोकपाल से बाहर रहेंगे, वैसे भी इन क्षेत्रों में आरक्षण नहीं है...अतः यहाँ बहुजनों का प्रतिनिधित्व बहुत ही कमजोर अथवा न्यून है...इस प्रतिनिधित्व को मजबूत करने के लिए इन क्षेत्रों में भी आरक्षण अति-आवश्यक है, जिसकी वर्तमान में प्रबल मांग उठ रही है !
कुल मिलाकर कहने का मतलब है कि...अब अगर दलित-शूद्र-बौध-मुस्लिम एक होकर चुनाव जीत लेते हैं और अपनी सरकार बना लेते हैं, तो भी सवर्णों का ही वर्चस्व कायम होने वाला था...क्यूंकि इनके लोकपाल में बहुजनों के लिए आरक्षण या प्रतिनिधित्व जैसी कोई बात नहीं थी, ये पूर्व की ही तरह एकछत्र राज करते...!
1. सरकार, "प्रधान मंत्री" को लोकपाल के दायरे में लाये !
2. सरकार, "न्यायपालिका" को लोकपाल के दायरे में लाए !
3. सरकार, "सांसदों" को लोकपाल के दायरे में लाये !
4. सरकार, अपना सरकारी-बिल वापस ले !
5. तीस अगस्त (30 अगस्त) तक "अन्ना का जन-लोकपाल-बिल" संसद में पास होना ही चाहिए !
6. बिल को "स्टैंडिंग-कमेटी" में नहीं भेजा जाए !
7. लोकपाल की नियुक्ति-कमेटी में "सरकारी-हस्तक्षेप" न्यूनतम हो !
8. जनलोकपाल बिल पर संसद में चर्चा नियम 184 के तहत करा कर उसके पक्ष और विपक्ष में बाकायदा वोटिंग करायी जाए !
आइये देखते हैं ब्राहमणवादी लोकपाल से जुड़े कुछ पहलू :-
1. यह मूवमेंट जिस समय चलाया गया तब, सरकार के गिरने की पूरी संभावनाएं थी...अन्ना एंड पार्टी (सवर्ण), जो लोकपाल (ऑंबडज़्मन) लाना चाहते हैं, वो प्रासंगिक ही नहीं है...मात्र राजनीतिक षड्यंत्र है...कुछ बड़ा गड़बड़-घोटाला है, जिसकी तरफ से करोड़ो लोगों का ध्यान हटाया जा रहा है...वर्तमान मुद्दे...कॉमन वेल्थ, 2 G स्पेक्ट्रम, टाटा-राडिया टेप-कांड, परमाणु दायित्व...इत्यादि !
2. वर्तमान सरकार ने कई औधोगिक घरानों के फोन, टेप करवाए थे...जिसमें टाटा-राडीया फोन-टेप-कांड काफ़ी चर्चा में रहा...अब अन्ना एण्ड कम्पनी (कॉर्पोरेट जगत एवं सिविल सोसाइटी) लोकपाल को फोन टेपिंग की शक्ति देने में लगे हैं...फोन टेप होने से एक तो ब्लैक-मेलिंग का ख़तरा और दूसरा ख़ुफ़िया खबरों एवं सूचनाओं के लीक होने या दुश्मनों को बेचे जाने का डर...!
3. अन्ना एण्ड कंपनी (कॉर्पोरेट जगत एवं सिविल सोसाइटी) के लोग जो कि NGOs चलाते हैं...भारत की ग़रीबी एवं लाचारी को दूर करने के लिए मदद के रूप में मिले विदेशी धन तक को हड़प जाते हैं...और ये तो सभी जानते हैं कि NGOs के मार्फत काले धन को सफेद किए जाने का रिवाज़ है...! अब सवर्ण चाहते हैं कि गवर्नमेंट फॅंडेड NGOs ही लोकपाल के दायरे में हो...भला ऐसा क्यूँ...??? जबकि सब जानते हैं कि NGOs में कितना भ्रष्टाचार है !
4. अन्ना एण्ड कंपनी (सवर्ण), व्यापार जगत और मीडिया जगत को भी लोकपाल से बाहर रखना चाहती है !
5. अन्ना एक कम पढ़ा-लिखा व्यक्ति है जो की कानून की बारीकियों एवं पेचीदगियों को नहीं जानता और तो और किसी भी कानून या विधेयक या ड्राफ्टिंग की तकनिकी पहलुओं को भी नहीं जानता...और हम यह भी जानते हैं हैं की फ़ौज की नौकरी करने वाले व्यक्ति को इस प्रकार ट्रेनिंग दी जाती है की उसका IQ स्तर निम्न हो जाता है...अतः अन्ना सिर्फ और सिर्फ एक मोहरा है...इससे ज्यादा और कुछ भी नहीं ! लेखक : Satyendra Humanist
स्त्रोत : आफ़ताब फाजिल ब्लॉग, 26.12.2011
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